"सपने देखने का हक़ सबका "
मन की बात : चित्र बोलते हैं :
पंजाब राज्य कार्यालय में १-१५ सितम्बर के दौरान आयोजित हिंदी पखवाड़े में मन की बात प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी। जो कविता मैंने वहाँ लिखी उसी को यहाँ प्रस्तुत किया है।
"सपने देखने का हक़ सबका "
पहला पहलू : गरीब लड़की का:
इस चित्र में सबसे पहले नज़र गयी वह थी एक मासूम सी लड़की नाम रखना चाहूंगी ज्योति ,
पीले वस्त्र पहने उम्र लगभग ४-५ वर्ष , साधारण से भी कम जीवन व्यतीत करती लगती ज्योति |
यूँ तो आँगन में ख़ुशी ख़ुशी पिता की गोद में है लगती बैठी हुई ,
परन्तु उसके चेहरे और आँखों से उसके मन की उदासी की झलक प्राप्त हुई |
अपने समक्ष सुन्दर सी फ्रॉक पहने लड़की को जब चिड़िया को दाना खिलाते हुए देखा ज्योति ने ,
मन ही मन खुद को उस लड़की से विभिन्न पाया , शायद ईर्ष्या के भाव को महसूस किआ ज्योति ने |
उस अमीर लड़की के पहनावे , जूते , हाव भाव को गौर से देखते हुए आखिर ज्योति क्या सोच रही है ?
इस छोटी सी उम्र में, खेलने कूदने के बचपन में जीवन के मूल भावों का अनुभव तो नहीं कर रही है ??
वह सोच रही होगी। इस लड़की का -परिवार कैसा कहाँ होगा, दोस्त कौन होंगे ,खिलौने कितने सारे होंगे ,
क्या वह स्कूल जाती होगी , नयी किताबें पढ़ती होगी , कितनी खुश होगी,,, क्या मेरे भी दिन बदलेंगे ??
एक तरफ ज्योति की इच्छा थी , इस लड़की के पास जाये , दोस्ती का हाथ बढ़ाये ,चिड़िया को अपने नए दोस्त के साथ दाना खिलाये। ...
पर फिर ज्योति को याद आया वह सड़क का नज़ारा, जब बड़ी गाड़ियों में बैठे ऐसे ही बच्चे उसे और उसके पिता को रेड लाइट के पास केवल १-२ रूपये देकर दूर भगाये | | |
और मासूम सी ज्योति अपने पिता की गोदी में स्थिर बैठी है। ...
दूसरा पहलू : पिता :
मैं, ज्योति का पिता , उम्र ३३ वर्ष , पिछले १० सालों से सडकों पर किताबें बेचता हूँ ,
रोज़ तकरीबन १० -१५ मील चलकर चंद रूपये कमाकर अपने परिवार का पेट भरने की कोशिश करता हूँ |
मेरी गोद में बैठी, मेरी नन्ही सी जान है, मेरी प्यारी बेटी ज्योति ,
मेरे जीने की आस , मेरी कड़ी मेहनत का कारण है मेरी प्यारी ज्योति |
तो क्या हुआ अगर आज हम गरीब हैं , रहने को घर नहीं, खाने के लिए पैसों की कमी है ,
परन्तु सपने देखने का हक़ तो सबको है, एक बेहतर जीवन की अपेक्षा करने में कोई हानि नहीं है |
एक दिन मैं भी अपनी ज्योति को इस लड़की की तरह पढ़ाऊंगा और अच्छे स्कूल भेजूंगा ,
नीली फ्रॉक पहने चिड़िया को दाने खिलाते इस लड़की के सामान और इससे भी बेहतर अपनी बेटी को भी बनाऊंगा |
ये वादा है मेरा अपनी बेटी से , मेरी प्यारी ज्योति से
परन्तु ये वादा है मेरा खुद से,
ये वादा है मेरा खुद से......
और यही सोचते हुए ज्योति के पिता के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान है।
*******************************************************************
Comments
Post a Comment