बदलती ज़िन्दगी , बदलते रिश्ते
बदलती ज़िन्दगी , बदलते रिश्ते _________
इस भाग दौड़ की ज़िन्दगी से इंसान को आखिर क्या मिला ,
मिला भी तो केवल पैसा, नाम, शोहरत ,पर रिश्तों का साथ कहीं छूट गया।
गये वो दिन वो रातें जब पूरा परिवार एकसाथ हंसी ख़ुशी रहते थे ,
चाहे खाने को कम, रहने को छोटा घर, फिर भी ज़िन्दगी भरपूर जीते थे।
जब सबके पास केवल रेडिओ तथा टी. वी ही मनोरंजन का सहारा था ,
जब चित्रहार एवं महाभारत देखने के लिए परिवार सुबह जोश में उठता था।
जब किसी के घर रंगीन टी. वी आने पर पूरा मोहल्ला एकत्र होता था ,
जब छोटी से छोटी बात /मुश्किल के लिए पड़ोस एवं रिश्तेदार का साथ भरपूर होता था।
जब ज़िन्दगी सरलता शांति और सादगी का दूसरा नाम था ,
जब प्यार मोहब्बत ही इंसान की सच्ची ख़ुशी का स्रोत था।
परन्तु आज सब बदल गया है , रिश्तों के मायने बदल गए हैं ,
ज़िन्दगी की इस अदभुत निरंतर दौड़ में इंसान जीना ही भूल गया है।
चंद रूपये, दौलत, ज़मीन, के के लिए भाई भाई की जान ले रहा ,
विदेश जाने की होड़ में , माँ -बाप को अकेला मरने के लिए।छोड़ रहा।
इस बदलते युग ने दिल की भावनाओं को नष्ट कर डाला ,
इस बदलती ज़िन्दगी ने रिश्तों के मायनों को बदल डाला ,
इस बदलते इंसान ने खुद को ही खुद से अलग कर डाला .........
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