भारत की क़ानूनी तथा न्यायिक प्रणाली की कहानी ,(legal and judicial system) एक वकील की ज़ुबानी ……
भारत की क़ानूनी तथा न्यायिक प्रणाली की कहानी ,(legal and judicial system)
एक वकील की ज़ुबानी …………… /or
ज़िन्दगी से बढ़कर कुछ नहीं , -
पिछले तीन वर्ष से अपने कार्यालय के विधि अधिकारी के हेतु मैंने भारत के न्यायिक तंत्र का एक दिलचस्प अनुभव किआ है,
अपने लोकतंत्र देश में कानूनी किताबों की पढाई एवं वास्तविकता के बीच उपस्थित द्विभाजन को भली भाँती देखा है ।
क्या कहूं मैं, कहाँ से शुरू करूँ, मन में इतनी तसवीरें , इतनी घटनाएं याद आती हैं ,
सोच कर कभी अत्यंत हंसी , कभी आक्रोश, और कभी दुःख एवं सहानुभूति की भावना जगाती है ।
बचपन से ही अपने आस पास हो रही घटनाओं को जानने की जागरूकता, क्यूँ, क्या, कैसे, जैसे प्रश्नों का दिल में भण्डार था ,
जो हो रहा है उसे मात्र स्वीकर ना करना, परन्तु मन, दिल के विचारों को अभिव्यक्त करने का अडिग स्वभाव था ।
शायद रही कारण रहा होगा जिस वजह से मैं कॉमर्स , पत्रकारिता जैसे मशहूर , सुरक्षित व्यवसायों को छोड़ने के निर्यण पर अटल रही ,
सबके मेरे इस निर्णय के विरुद्ध होने पर भी वकालत जैसे अद्वितीय व्यवसाय की तरफ खिची चली गयी।
फिल्मों में, टीवी में कोर्ट कचेहरी के नज़ारों को खूब गौर से और रूचि से देखा था ,
कानून से सम्बन्धी भारत में हो रही घटनाओं, किस्सों को रोज़ अख़बारों में पढ़ा था ,
परन्तु वास्तव में क्या ऐसा सब होता है , या कुछ और, इसका अंदाज़ा बिलकुल ना था ।
कानून एक दुश्चक्र है, दिलचस्प मगर कठिन , इस सच्चाई का अनुमान बिलकुल ना था ।
कभी सोचा ना था कि वातानुकूलित (air conditioned) कार्यालय को छोड़कर दिल्ली के विभिन्न अदालतों , नन्यायालयों के चक्कर काटूंगी',
न्यायाधीश के सामने अपने निगम के कैस के लिए, इन्साफ के लिए, उनकी ओर से उनका पक्ष रखूंगी ।
निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायलय तक के अनुभव ने इस कुछ ही समय में मुझे बहुत कुछ दिखाया है,
सब्र एवं विश्वास एक इंसान की ज़िन्दगी में कितना महत्व्पूर्ण है, इसका एहसास दिलाया है ।
जब सुबह से लेकर दिन तक अदालत में व्यतीत करने के बाद भी केस आने का नाम ओ निशान नहीं दिखाई देता,
जब एक दिन पहले रात तक खूब तैयारी करने के बाद "आज जज साहब छुट्टी पर हैं "- खबर का सुबह पता चलता ।
नि:संदेह दिल में एक आक्रोश पैदा होता है ,क्यूँ हम इतनी मेहनत करते हैं ,
क्यूँ हमारे देश का कानून ऐसा है , ऐसे कई सवाल मन में निरंतर गूंजते हैं ।
जब जब मैं कोर्ट जाती हूँ , केस आने के इंतज़ार में अपने आस पास के माहोल , लोगों को देखती हूँ ,
छोटे छोटे बच्चों से लेकर ८० वर्ष के बुज़ुर्ग को अपने बीच पा कर अत्यंत हैरान होती हूँ और सोचती हूँ ।
क्यूँ लोग घर-परिवार के निजी मसलों को दुनिया के समक्ष लाकर उनका अपमान करते हैं,
क्यूँ लोग घर-परिवार के निजी मसलों को दुनिया के समक्ष लाकर उनका अपमान करते हैं,
क्यूँ लोग सालों तक, कुछ मात्र पैसों के लिए, अपने रातों की नींद और दिन का चैन बर्बाद करते हैं ।
शायाद रोज़ ही इन सवालों के जवाबों की खोज में अपने दिन की शुरुवात करती हूँ ,
तथा रोज़ निराश हो कर , कोर्ट से वापिस कार्यालय और शाम को घर पहुँचती हूँ ।
परन्तु जिस दिन अदालत में हमारे पक्ष में फैसला होता है, या अभियुक्त के खिलाफ आदेश होता है ,
एक अजीब से ख़ुशी का एहसास होता है जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल हो जाता है ।
देर से ही सही परन्तु सच कि जीत हमेशा होती है,
यह तथ्य पुन: पुष्ट हो जाता है ।
इस देश का कानून अँधा नहीं है, अपितु बहुत ताकतवर है ,
यह विश्वास दुबारा जाग उठता है ।
पर इस सब के पश्चात भी बस एक बात का एहसास होता है ,
अदालत के चक्कर काटना खुद में ही एक सजा है।
इन्साफ पाने कि चेष्ठा में दोनों पक्षों का तन मन धन बुरी तरह व्यथित होता है,
एक शांतिपूर्ण ज़िन्दगी से बढ़कर कुछ नहीं , और जिसके पास यह है.,
……वह ही वास्तव में अमीर होता है ।
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